पंडरिया : आदिवासी आश्रमों की व्यवस्था पर सवाल..टेबल पर बैठकर बेधड़क बीड़ी पीता हुआ दिखा छात्र.स्थानीय ग्रामीणों में भारी आक्रोश है..


टीकम निर्मलकर AP न्यूज़ पंडरिया : कवर्धा जिले के पंडरिया ब्लॉक स्थित आदिवासी बालक आश्रम में अव्यवस्थाओं का गंभीर मामला सामने आया है। आश्रम का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया है। वीडियो में आश्रम के अंदर बच्चों की दयनीय स्थितियों के साथ-साथ अनुशासनहीनता के चौंकाने वाले दृश्य स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।
वायरल वीडियो में देखा गया कि कई बच्चे जमीन पर बैठकर थालियों में भोजन कर रहे थे। वहीं कुछ दूरी पर एक छात्र टेबल पर बैठकर बेधड़क बीड़ी पीता हुआ दिखा। वहीं टेबल पर अन्य बच्चे अपनी किताबों और स्कूल बैग के साथ बैठे हुए दिखे। आश्चर्य की बात यह है कि वीडियो में आसपास कोई शिक्षक या जिम्मेदार अधिकारी मौजूद नहीं है, जो इन बच्चों को रोक सके या समझा सके। आश्रम की इस स्थिति को लेकर अभिभावकों और स्थानीय ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। लोगों ने आरोप लगाया है कि बच्चों की देखरेख पूरी तरह भगवान भरोसे छोड़ दी गई है। न भोजन व्यवस्था सुचारू है, न ही बच्चों के अनुशासन, दिनचर्या और स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जा रहा है। बताया जा रहा है कि आश्रम की अधीक्षक कई बार अनुपस्थित रहती हैं, जिसके कारण बच्चों पर निगरानी लगभग शून्य हो गई है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार आदिवासी बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और उज्ज्वल भविष्य के लिए हर वर्ष बड़ी रकम खर्च करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर उनका लाभ बच्चों तक पहुंचता दिखाई नहीं देता। ऐसे हालात में बच्चों का भविष्य अंधकार में धकेला जा रहा है।
अब प्रशासन सक्रिय
मामले के तूल पकड़ने के बाद प्रशासन भी सक्रिय हो गया है। आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त लक्ष्मीचंद पटेल ने इस घटना को गंभीर बताते हुए कहा है कि जांच की कार्रवाई शुरू कर दी गई है और दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने आश्वासन दिया कि जो भी अधिकारी या कर्मचारी बच्चों की उपेक्षा या लापरवाही के दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई निश्चित रूप से की जाएगी।
आदिवासी आश्रमों की व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने न केवल आदिवासी आश्रमों की व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा से जुड़ी मौजूदा सरकारी व्यवस्थाओं की वास्तविकता भी सामने ला दी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन इस मामले में कितनी प्रभावी कार्रवाई करता है और क्या इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाते हैं, ताकि भविष्य में बच्चों को ऐसी उपेक्षा का सामना न करना पड़े।

