गंडई पंडरिया – नगर के सेवा निवृत्त व्याख्याता,साहित्यकार व संस्कृति कर्मी डॉ.पीसी लाल यादव ने गत दिवस भोपाल में आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेकर छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। जन जातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी,मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद भोपाल द्वारा गौरांजनी सभागार रवींद्र भवन भोपाल में 27 से 29 जनवरी तक राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विषय था सांस्कृतिक परम्परा में साधु और सन्यासी।
संगोष्ठी का शुभारंभ आचार्य मिथिलेशनन्दनीशरण जी अयोध्या के कर कमलों से सम्पन्न हुआ। अध्यक्षता की अकादमी के निदेशक डॉ.धर्मेंद्र पारे ने। संगोष्ठी के द्वितीय दिवस के दूसरे सत्र में अंचल के प्रसिद्ध साहित्यकार व संस्कृति कर्मी डॉ. पीसी लाल यादव का उक्त विषय पर शोधपूर्ण व सारगर्भित व्याख्यान हुआ। डॉ.यादव ने छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध दूधाधारी मठ रायपुर की सांस्कृतिक परम्पराओं को केंद्र में रखते हुए कहा- जिस प्रकार से छत्तीसगढ़ गढ़ों का गढ़ है, उसी प्रकार दूधाधारी मठ मठों का मठ है। यह मठ रामानन्द सम्प्रदाय से सम्बंधित है। जिसकी स्थापना सम्वत 1610 में महंत बलभद्र दास जी के द्वारा की गई। महंत जी केवल दूध का आहार करते थे। इसलिए वे दूधाधारी के नाम से प्रसिद्ध हुए और मठ का नाम दूधाधारी पड़ा। डॉ. यादव ने दूधाधारी मठ के इतिहास के साथ ही यहाँ के धार्मिक,आध्यात्मिक, साँस्कृतिक, पुरातात्विक, सामाजिक, राजनैतिक तथा शैक्षिक अवदानों पर प्रकाश डाला।जिसकी सबने प्रशंसा की।
इस अवसर पर अकादमी के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे ने डॉ.पीसी लाल यादव को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।संगोष्ठी का समापन प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक विद्वान वक्ता जे. नन्दकुमार के मुख्य आथित्य में सम्पन्न हुआ।