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बीईओ पर लगाए गए आरोपों की हकीकत: शिक्षिका को स्वास्थ्य आधार पर दी गई राहत

कवर्धा। प्रभारी खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) संजय जायसवाल पर लगाए गए कथित नियम विरुद्ध संलग्नीकरण के आरोपों को लेकर अब वास्तविकता सामने आ रही है। संबंधित शिक्षिका मिथिला जायसवाल और बीईओ कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह निर्णय पूरी तरह स्वास्थ्यगत कारणों और मानवीय आधार पर लिया गया था, जिसे उच्चाधिकारियों से अनुमति लेकर लागू किया गया।

गंभीर बीमारी से पीड़ित शिक्षिका को मानवीय दृष्टिकोण से अस्थायी पदस्थापना

मिथिला जायसवाल ने स्पष्ट किया कि वे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, और इसी के चलते उन्होंने बीईओ कार्यालय में स्वस्थ्यगत आधार पर निवेदन पत्र सौंपा था। उन्होंने कहा कि उपचार की सुविधा और नियमित देखरेख के लिए शहर के पास रहने की आवश्यकता थी। इस निवेदन पर सहानुभूति रखते हुए उन्हें तालपुर की एकल शिक्षकीय शाला में अध्यापन व्यवस्था के तहत अस्थायी रूप से पदस्थ किया गया।

उच्चाधिकारियों की स्वीकृति से हुई अध्यापन व्यवस्था हेतु पदस्थापना

इस संबंध में जब बीईओ संजय जायसवाल से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि शिक्षिका के आवेदन और मेडिकल दस्तावेजों की पुष्टि के बाद उन्होंने उच्च कार्यालय से चर्चा कर अनुमति ली, और उसके बाद ही शिक्षिका को एकल शिक्षकीय विद्यालय में अस्थायी रूप से अध्यापन व्यवस्था के तहत पदस्थ किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि संबंधित प्रक्रिया की जानकारी पूरी पारदर्शिता के साथ उच्चाधिकारियों को पृष्ठांकित की गई है।

कूटरचित पत्र के जरिए छवि धूमिल करने की साजिश

संजय जायसवाल ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में अनुपस्थित शिक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई, शिक्षकों की समयपालन व्यवस्था और बच्चों के हित में कई निर्णय लिए, जिससे कुछ तथाकथित स्वार्थी लोग असहज हैं और अब उनके खिलाफ भ्रामक प्रचार कर साजिश रच रहे हैं।

शिक्षा विभाग में बढ़ती राजनीति से प्रशासनिक गरिमा पर प्रश्नचिन्ह

उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा, जो अपने नियमों के प्रति कठोर अनुशासन और प्रशासनिक दक्षता के लिए प्रदेशभर में जाने जाते हैं, उनके गृह जिले कबीरधाम में एक जिम्मेदार अधिकारी पर बार-बार लगाए जा रहे आरोप न केवल शिक्षा विभाग की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि यह घटनाक्रम प्रदेश स्तर पर शासन की गरिमा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। शिक्षा विभाग के कुछ अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों द्वारा भी सार्वजनिक रूप से बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप में संलिप्त होना, न सिर्फ आंतरिक मर्यादाओं का उल्लंघन है बल्कि इससे आमजन में शासन की कार्यप्रणाली को लेकर उपहास और अविश्वास का भाव भी पनप रहा है। बार-बार ऐसे प्रकरण सामने आना इस बात का संकेत है कि राजनीतिक या व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते विभागीय अनुशासन को ठेस पहुंचाई जा रही है, जिससे उपमुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा और उनकी प्रशासनिक छवि भी प्रभावित हो सकती है।

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