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MP के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा- कमलनाथ ने कोरोना की चिंता नहीं की, शिवराज ऐक्शन मोड में

नरोत्तम मिश्रा ने कहा, हमने कोरोना वायरस को थामने की कोशिश की है और आज हमारा रिकवरी रेट 53 प्रतिशत पर है।
Image Source : INDIA TV

नई दिल्ली: इंडिया टीवी की ‘हेल्थ मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस’ में विभिन्न राज्यों के स्वास्थ्य मंत्री अपने-अपने राज्यों में कोरोना वायरस से लड़ने की रणनीति के बारे में बता रहे हैं। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि उनकी सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण की पीक से लड़ने की तैयारी कर ली है। मिश्रा ने साथ ही कहा कि हम कोरोना से लड़ाई में पिछड़ गए क्योंकि सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कोरोना वायरस की चिंता ही नहीं की।

‘कोरोना के पीक से लड़ने की तैयारी पूरी’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह दावा कर सकते हैं कि मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति अच्छी है, मिश्रा ने कहा, ‘ निश्चित रूप से हम हर व्यक्ति की आंख में आंख डालकर कहने की स्थिति में हैं कि हम उन्हें बचा लेंगे। डबलिंग का जो रेट दूसरे प्रदेशों में है वह मध्य प्रदेश में नहीं है। हमने कोरोना वायरस को थामने की कोशिश की है और आज हमारा रिकवरी रेट 53 प्रतिशत पर है। WHO से लेकर दूसरी संस्थाओं ने जून के महीने में जो पीक आने की बात कही है, हमने उस हिसाब से तैयारी कर ली है।’

‘कांग्रेस सरकार की वजह से लड़ाई में पिछड़े’
मिश्रा ने कहा, ‘हम इस लड़ाई में थोड़ा पिछड़ गए, क्योंकि मध्य प्रदेश के अंदर जब कोरोना वायरस घुसा तब यहां कांग्रेस की सरकार थी। जब मध्य प्रदेश के इंदौर में पहली फ्लाइट दुबई से आई तब यहां कांग्रेस की सरकार थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कोरोना की चिंता ही नहीं की। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 23 मार्च को शपथ लेने के साथ ही उसी रात 9 बजे बैठक की, तब तक स्थिति बिगड़ गई थी। इंदौर से कोरोना भोपाल उज्जैन औऱ अन्य शहरों में फैल गया। वहीं, जमातियों की वजह से भी कोरोना सूबे में फैला।’

‘उत्तर प्रदेश के श्रमिकों के लिए 850 बसें लगाईं’
मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘हमने महाराष्ट्र के बॉर्डर से उत्तर प्रदेश के श्रमिकों के लिए 850 बसें लगाई हैं ताकि एक भी मजदूर पैदल न जाएं। आप मध्य प्रदेश की सीमा पर यह जानकारी ले सकते हैं कि हमने मजदूरों के नाश्ते की कैसी व्यवस्था की है। हमारे यहां गांवों के अंदर इतनी जागरूकता आ गई है कि वहां स्कूल या आंगनवाड़ी की बिल्डिंग में क्वॉरन्टीन की व्यवस्था कर दी गई है। क्वॉरन्टीन की अवधि को पूरा करने के बाद ही लोगों को गांवों में जाने दिया जा रहा है।’

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