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पहाड़ों, नदियों, मैदानी इलाकों, राज-परिवार, जमींदारों, तीन शहरों के साथ, पांच मिजाज का नया जिला केसीजी – आलेख – विप्लव साहू

पहाड़ों, नदियों, मैदानी इलाकों, राज-परिवार, जमींदारों, तीन शहरों के साथ, पांच मिजाज का नया जिला केसीजी – आलेख – विप्लव साहू

खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले में जागती आंखों से देखे गए सपनों के साथ, अपने ऐतिहासिक नाम के अनुरूप गौरव की आकांक्षा, विकास, व्यापारिक, प्रशासनिक सुविधाओं के अरमान लिए नया जिला प्रस्तुत है.

इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 1 लाख 55 हजार 197 हेक्टेयर, 4 लाख 68 हजार की जनसंख्या और दो विकासखंड के साथ, 488 गांव वाला जिला होगा, जिसमे सबसे बड़ा शहर खैरागढ़ और सबसे बड़ा गांव मुढ़ीपार होगा. हिंदी के साथ पूरे भाग में छत्तीसगढ़ी बोली जाती है. पर्वतीय इलाकों में थोड़े लोग गोंडी, पहाड़ी, और मराठी भी बोलते-जानते हैं.
कृषि उत्पादन में पूरी तरह समर्पित नवगठित जिले को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांट सकते हैं. स्टेट हाइवे क्रमांक 6 से पूर्व और पश्चिम. पश्चिम में भौगोलिक दृष्टि में नए जिले का 30% हिस्सा सतपुड़ा पर्वतमाला के मैकाल श्रृंखला से आच्छादित है. इसका पूरा किनारा हिस्सा मध्यप्रदेश से लगा हुआ है. पहाड़ियों से पूर्वी मैदानी इलाकों में आती प्रमुख नदियां आमनेर, पिपरिया, लमती, सुरही और जिले की सीमा बनाती कर्रानाला है. रामपुर की पहाड़ियों से बंजर नदी, विस्तार लेती हुई नर्मदा नदी में जा मिलती है. नदियों में कुछ बांध-बैराज बने हैं. जिनसे सिंचाई के बाद नदियों का पानी शिवनाथ-महानदी में मिलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं. नदियों में अभी सिंचाई परियोजनाओं के विकास की पर्याप्त संभावना है, जिनमे काम होना बाकी है.

अपनी जनजातीय पहचान और अलग राजनीतिक धारा के साथ वनांचल का अपना अलग पारंपरिक स्वभाव है. साल्हेवारा के तहसील निर्माण और शिक्षा उन्नयन के साथ, बिछते सड़कों के जाल ने वनांचलवासियों, आदिवासी-बैगा युवाओं में उन्नति और विकास की उम्मीद है, वो कितना पूरा हो पायेगा, यह शासन और जनप्रतिनिधियों की योजनाओं से नजर आएगा.

प्रधानपाठ बैराज, गंजही-गंजहा बांध, छिंदारी जलाशय, बैतालरानी घाटी, सुरही जलाशय और फ़िल्म शूटिंग में मस्त, साल्हेवारा घाटी की वादियां है. लेकिन कई छुपे हुए जलप्रपात और पर्यटन स्थलों तक पहुंचना अभी बाकी है.
10 वी शताब्दी में प्रस्फुटित नर्मदा का उदगम स्थल, गंडई में गंगई माता मंदिर, गंडई में ही 9वीं से 14वीं शताब्दी के शिव व बौद्ध मंदिर, शैव धर्म और बौद्ध धर्म का पुरातत्व स्थल है. वहीं खैरागढ़ में इंदिरा कला संगीत विश्विद्यालय अपने आप में बड़ी उपलब्धि है. माता दंतेश्वरी अपने वैभव के साथ विराजित है, तो वहीं सिद्ध रुक्खड़ स्वामी की पवित्र धुनी ने आर्शीवाद बनाये रखा है. जिले के दक्षिणी छोर पर करेला की सुरम्य पहाड़ियों में माता भवानी का मंदिर, नये जिले में पर्यटन का सबसे बड़ा केंद्र है.

राजनीति में हुकूमत खैरागढ़ राज परिवार की ही रही, लेकिन क्षेत्रों की जमींदारी का असर-लकीर आज भी है. राजनीतिक प्रभाव में संयुक्त मध्यप्रदेश, दिल्ली या फिर अब राजधानी रायपुर हो, खैरागढ़ राज परिवार का दबदबा, बेहद शक्तिशाली रूप में रहा है. हालांकि कुछ सालों में चुनाव में जीतने वाले समीकरणों के चलते लोधी समुदाय ने गहरी पैठ बनाई है. छुईखदान, ठाकुरटोला के साथ गंडई की वृहद जमींदारी, जो कभी गढ़ा-मंडला रियासत में शामिल थी, आज भी राजनीतिक और सामाजिक रूप से खास पट्टी पर असर कायम रखा है.

वाणिज्य-व्यापार और प्रशासनिक धुरी तीनों शहर, खैरागढ़, छुईखदान और गंडई, गांवों पर ही निर्भर है. लेकिन तीनों शहर का अपना अलग-अलग मिज़ाज है, यह त्रिकोणीय अंदाज, अलग-अलग खूबसूरती के साथ कायम भी रहना चाहिए. वहीं जिले के पूर्वी गांवों में मिला-जुला जीवन और सामान्य संस्कृति देखने को मिलती है. पूरा इलाका सिर्फ और सिर्फ खेती पर ही निर्भर है. खेती की टाइमिंग, बदलते जीवन की जरूरत और जमाने की दौड़ में हैदराबाद, पुणे, नागपुर और सूरत की तरफ जाते दसियों दैत्याकार बसों में हजारों लोग रोज पलायन करते हैं.

उद्योग-कारखानों के नाम पर जिले में एक तरह से शून्यता है. मानव संसाधन, प्राकृतिक संसाधन, जल संसाधन की प्रचुरता का दोहन कैसे होगा? जिलेवासियों को रोजगार मुहैया कराने का ब्लूप्रिंट तैयार करना और छोटे जिले में सशक्त प्रशासन, चुस्त राजनीतिक व्यवस्था चुनौती होगी.

इसमें कोई दो राय नही की मौजूदा व्यवस्था के साथ अशिक्षा, स्वार्थ और अवसरवादिता के घने जंगल के बीच, नए जिले में विकास के आयाम के लिए सरकार के साथ ही अच्छे शिक्षित, सकारात्मक, कल्पनाशील, सृजनशील लोगों के साथ नौकरशाही के ईमानदार प्रयास की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.

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