डॉ. अनुज प्रभात की पुस्तक “समय की रेत पर” का लोकार्पण
विश्वसनीय जानकारियों से लैस पुस्तकें ही हमें सही रास्ता दिखा सकती हैं: सुभाष नीरव
नई दिल्ली, 22 सितंबर। वर्तमान समय में जब तकनीक का विकास हर गुजरते समय के साथ अभूतपूर्व गति के साथ हो रहा है, वैसे ही लोगों की याद रखने की क्षमता भी क्षीण होती जा रही है। आज बच्चे से लेकर बूढ़े तक किसी भी जानकारी के लिए गूगल जैसे सर्च इंजनों पर निर्भर होते जा रहे हैं। हालांकि सर्च इंजनों से प्राप्त जानकारियों के समंदर से विश्वसनीय जानकारियां निकाल पाना भी एक कठिन काम है। ऐसे में सारगर्भित और विश्वसनीय जानकारियों से लैस पुस्तकें ही सही मायने में हमें सही रास्ता दिखा सकती हैं। डॉ अनुज प्रभात की पुस्तक “समय की रेत पर” ऐसी ही एक पुस्तक है, जिसमें भारत के अनेक महापुरुषों के बारे में सारगर्भित आलेखों का एक गुलदस्ता समाहित है। यह बातें वरिष्ठ कथाकार एवं कवि श्री सुभाष नीरव ने रविवार को डॉ अनुज प्रभात की पुस्तक “समय की रेत पर” के लोकार्पण समारोह के दौरान कही।
नई दिल्ली के साध नगर में साहित्यिक संस्था कथा दर्पण साहित्य मंच के तत्वावधान में आयोजित इस समारोह के प्रथम सत्र में पुस्तक लोकार्पण तथा सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता श्री सुभाष नीरव ने की। कार्यक्रम की शुरुआत गणमान्य अतिथियों के स्वागत से हुई, जिसमें अतिथियों को गुलदस्ता और शॉल प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस दौरान पुस्तक के लोकार्पणकर्ता वरिष्ठ कवि, चित्रकार एवं लघुकथाकार श्री सिद्धेश्वर ने डॉ अनुज प्रभात को उनकी पुस्तक के लिए बधाई देते हुए कहा कि डॉ प्रभात विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। उनकी यह पुस्तक पठनीय तो है ही, संग्रहणीय भी है। इस पुस्तक में उन्होंने जिस तरह से सरल और सहज भाषा में ऐतिहासिक किरदारों को जीवंत किया है, वह इसे बेहद विशेष पुस्तकों को श्रेणी में ला खड़ा करता है।
इस सत्र में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कुमार विवेक ने भी डॉ प्रभात को बधाई देते हुए उनकी इस पुस्तक की सराहना की।
लोकार्पित पुस्तक के लेखक डॉ अनुज प्रभात ने सिद्धेश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि मूल रूप से कवि कथाकार होने के बावजूद ” समय की रेत पर ” जैसी पुस्तक लिखना मेरे लिए संभव नहीं था, जिसे साकार रूप दिया, तर्पण अखबार में नियमित स्तंभ के रूप में इस तरह का ऐतिहासिक आलेख लिखवाने के लिए प्रेरित करने वाले साहित्य संपादक सिद्धेश्वर जी ने l भारत के राजनीतिक,ऐतिहासिक वैज्ञानिक,साहित्यिक व धार्मिक व्यक्तित्व के बारे में जो हम बोलते रहे हैं, उनके व्यक्तित्व पर हमने कलम चलाना ज्यादा बेहतर समझा और स्तंभ की शुरुआत ‘ समय की रेत पर ‘ के नाम से की, जो आज पुस्तक के रूप मेंआपके समक्ष है l
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि कवि एवं कथाकार श्री संदीप तोमर ने पुस्तक के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ प्रभात की इस पुस्तक में सम्मिलित महापुरुषों का जिस प्रकार चयन किया गया है, वह सही मायनों में भारत की बौद्धिक एवं ज्ञानी इतिहास को रेखांकित करता है। इस दौरान अपने मधुर ग़ज़लों के लिए चर्चित ग़ज़लकार श्री कालजयी घनश्याम, श्री प्रणव कुमार और श्री चैतन्य चंदन ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए और डॉ प्रभात को उनकी पुस्तक के लिये बधाई दी। l कार्यक्रम के दूसरे सत्र में लघुकथा एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सुभाष नीरव ने अपनी लघुकथा "तिड़के घड़े" सुनाई। कार्यक्रम में श्री सिद्धेश्वर ने अपनी ग़ज़ल “अपने बावले दिल को सम्भालो ज़रा/कभी झूठी क़समें भी खा लो ज़रा”, डॉ अनुज प्रभात ने “रजनी अब टू घूँघट खोल” शीर्षक कविता, श्री संदीप तोमर ने “औक़ात” शीर्षक कविता, श्री कालजयी घनश्याम ने अपनी ग़ज़ल “बात सच है बहाना नहीं है/पास मेरे ख़ज़ाना नहीं है”, श्री प्रणव कुमार ने “जन्नत की राह पे जाने को”, श्रीमती निशा भास्कर ने “लड़ता जो अंधड़ों से मैं वो बाज परिंदा हूँ/जीने की आरज़ू में मैं आज भी ज़िंदा हूँ”, हास्य कवि नवल घुणावत ने रिश्वतखोडर पुलिस को चूना लगाने की घटना को अपनी हास्य कविता के माध्यम से सुनाया। कार्यक्रम में सबसे युवा कवि अर्चित भारद्वाज ने अपनी कविता “हर कर्मों का फल होगा/ आज नहीं तो कल होगा” एवं श्री चैतन्य चंदन ने अपनी ग़ज़ल “हरेक बाप-माँ की कमाई हैं बच्चे/ख़ुदा से भी बढ़कर खुदाई हैं बच्चे” सुनाकर समां बांध दिया। इस दौरान डॉ ललित किशोर, डॉ संजीव कुमार, वीणा गुप्ता, रेणु सिन्हा, पूजा सिंह, निशा भारद्वाज, अभिजीत आनन्द, सुनील सिंह, प्रतिमा सिंह, लीलावती, रंजना बत्रा आदि गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ लेखिका एवं कवयित्री निशा भास्कर ने एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ अनुज प्रभात ने किया।