खैरागढ़ महोत्सव के समापन समारोह में महामहिम राज्यपाल रमेन डेका हुए शामिल


AP न्यूज विश्वराज ताम्रकार जिला ब्यूरो चीफ केसीजी
राज्यपाल के गोद ग्राम सोनपुरी के थीम सॉन्ग का हुआ विमोचन

अंतिम दिन हजारों के संख्या में रही दर्शकों की भीड़
बहुप्रतीक्षित खैरागढ़ महोत्सव 2025 के समापन समारोह में महामहिम राज्यपाल एवं कुलाधिपति रमेन डेका मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। उनके आगमन के साथ ही पूरा समारोह गरिमा, उत्साह और सांस्कृतिक आत्मीयता से भर गया। सर्वप्रथम राष्ट्रगान एवं राज्यगीत की प्रस्तुति के बाद मां सरस्वती की प्रतिमा एवं राजकुमारी इंदिरा के तैलचित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन किया गया जिसके बाद विश्वविद्यालय के कुलगीत की प्रस्तुति हुई। इसके बाद राज्यपाल के गोद ग्राम सोनपुरी के थीम सॉन्ग का विमोचन किया गया।
कला केवल मनोरंजन नहीं है, वह मनुष्य को संवेदनशील बनाती है– राज्यपाल
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल एवं कुलाधिपति ने कहा कि भारतीय संस्कृति जितनी प्राचीन है उतनी ही हमारी कला परंपरा है। कला केवल मनोरंजन नहीं है बल्कि वह मनुष्य को संवेदनशील बनाती है। कला वह शक्ति है जो मनुष्य में विचार, संवेदना, करुणा और मर्मता जागृत करती है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति रामायण काल से भी प्राचीन है। बस्तर का दशहरा विश्व में सर्वाधिक दिनों तक चलने वाला दशहरा है, यहां रामायणी साहित्य का प्रदर्शन अतुलनीय है। खैरागढ़ का नाम पूरे देश में कला तीर्थ के रूप में जाना जाता है। यह स्थान देश के महान साहित्यकार डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की जन्मभूमि होने के साथ ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा का केंद्र भी रहा है। राज्यपाल महोदय ने कहा कि ऐसे आयोजन नई पीढ़ी में कला के प्रति प्रेम और संरक्षण की प्रेरणा जगाती है तथा कलाकारों को अपने हुनर के प्रदर्शन हेतु मंच भी प्रदान करती हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रो.(डॉ.) लवली शर्मा ने कहा कि इस आयोजन से हमारे विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों का ज्ञानवर्धन हुआ है। इस मंच पर विभिन्न शास्त्रीय, लोकसंगीत और साहित्यिक प्रस्तुतियाँ हुई हैं, जो हमारे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा है। खैरागढ़ नगर एवं ग्रामीण अंचल के लोगों में ललित कलाओं के प्रति अभिरुचियाँ हैं। हम सतत् प्रयासरत हैं कि हमारे विश्वविद्यालय के रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ हो और अतिरिक्त पदों का सृजन हो। उन्होंने विश्वविद्यालय के बेहतर संचालन हेतु शीघ्र ही रिक्त पदों पर भर्ती की अनुमति प्रदान करने के साथ ही इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय पटल पर ले जाने हेतु सहयोग प्रदान करने की बात कही। अति विशिष्ट अतिथि रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय ऐसा विश्वविद्यालय है जिसका पूरे विश्व में नाम है। संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, मनुष्य के मन, बुद्धि, शरीर व आत्मा को केवल संगीत से संतुष्टि मिल सकती है। उन्होंने कहा कि कलाकारों के ड्रेसअप व स्टेप्स को बेहतर बनाए तो देश में ही नहीं बल्कि विश्व में कलाकार अपना नाम रौशन कर सकते हैं। विशिष्ट अतिथि विधायक यशोदा वर्मा ने कहा आज के दिन उन महान विभूतियों को याद करते हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय के लिए अपना महल दान कर दिया। यह केवल कला ही नहीं बल्कि सात सुरों का संगम भी है। इस संगम में केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश विदेश के कलाकार भी समाहित है। उन्होंने स्थानीय बच्चों को भी आगे बढ़ने का मौका देने की बात कही।
कार्यक्रम से पहले राज्यपाल महोदय ने आर्ट गैलरी व स्टॉल का किया निरीक्षण
कार्यक्रम से पहले राज्यपाल एवं कुलाधिपति महोदय ने अतिथियों के साथ विश्वविद्यालय के आर्ट गैलरी का निरीक्षण किया। साथ ही उन्होंने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा लगाए गए स्टॉल का भी निरीक्षण किया और बच्चों को प्रोत्साहित किया।
विश्वविद्यालय के नृत्य संकाय की प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध हुए दर्शक
समापन कार्यक्रम का शुभारंभ सायं 5 बजे हुआ जहां नृत्य संकाय के विद्यार्थियों ने कथक, भरतनाट्यम व ओडिसी नृत्य की सधी हुई प्रस्तुतियां दी जिसने दर्शक दीर्घा को मंत्रमुग्ध कर दिया। कथक नृत्य अंतर्गत तराना की प्रस्तुति, भरतनाट्यम में शिवोहम व राग हिंडोलम तथा ओडिसी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति के खूब तालियां बटोरी।
उस्ताद सिराज अली के सरोद वादन ने बांधा समां
कार्यक्रम का अगला चरण संगीत प्रेमियों के लिए किसी सौगात से कम नहीं था। कोलकाता से आए मशहूर सरोद वादक उस्ताद सिराज अली खान के सरोद की सुरीली तरंगों पर तबले की लयकारी के संगम ने दर्शकों को एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभूति दिलाई। सरोद वादन की समाप्ति पश्चात देर तक तालियां बजती रही, दर्शकों की प्रसन्नता देख उस्ताद दोबारा प्रस्तुति देने हेतु अपने आप को रोक नहीं पाए।
पंडित संजू सहाय के तबला वादन में बनारस घराने की रही गूंज
सरोद वादन के बाद पंडित संजू सहाय के द्वारा तबला वादन की प्रस्तुति दी गई जहां बनारस घराने की गूंज से पूरा पंडाल संगीतमय हो गया। उठान के बाद
बनारसी ठेका व झाले की शानदार प्रस्तुति के लिए शुरुवात से लेकर अंत तक तालियां बजती रही। पंडित जी के शानदार तबला वादन से प्रसन्न होकर कुलपति महोदया ने पंडित संजू सहाय को उपलब्धता होने पर प्रति वर्ष एक बार अवश्य आने की बात कही।
आकर्षण का केंद्र रहा विदुषी शमा भाटे का कथक–नृत्य
पुणे की प्रख्यात कथक नृत्यांगना विदुषी शमा भाटे एवं उनके समूह की प्रस्तुति समापन समारोह में विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। रामायण के विभिन्न प्रसंगों यथा सीता स्वयंवर, केवट प्रसंग, सीता हरण, अशोक वाटिका लंका दहन व युद्ध पर कथक नृत्य की मनमोहक प्रस्तुतियां दी गई। उनकी प्रस्तुति को दर्शकों ने अनेक बार तालियों से सम्मान दिया।
लोकसंगीत की धारा से महोत्सव में घुली छत्तीसगढ़ी महक

समारोह के अंतिम चरण में राजनांदगांव की लोकगायिका श्रीमती कविता वासनिक एवं उनके दल ने लोकसंगीत अनुराग धारा की प्रस्तुति दी। छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की मधुरता, ढोलक–मांदर की ताल और ग्रामीण संस्कृति की झलक ने समूचे पंडाल को लोकधुनों के उत्सवी रंग में रंग दिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीत पता लेजा रे, तोला देखे रहो गा, आबे की नहीं बता दे मोला जैसी सुमधुर गीतों की प्रस्तुति दी। अंत में दर्शक इतने उत्साहित हुए कि कार्यक्रम को और आगे बढ़ाना पड़ा। छत्तीसगढ़ी गीतों पर कलाकारों के साथ ही दर्शक भी थिरकने लगे। कार्यक्रम में लोकमाटी की खुशबू, भावनाओं की गर्माहट और अपनत्व का अनोखा संगम देखने मिला।

