फसल अवशेष प्रबंधन हेतु कृषि विभाग ने जारी किए दिशा-निर्देश

AP न्यूज विश्वराज ताम्रकार जिला ब्यूरो चीफ केसीजी
पराली जलाना भूमि, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक : कृषि विभाग
खैरागढ़, 09 नवम्बर 2025/
जिले में इन दिनों धान की कटाई का कार्य तेजी से जारी है। कटाई के उपरांत कई किसान भाई अपने खेतों में बची पराली को जला देते हैं। इस संबंध में यह गलतफहमी प्रचलित है कि पराली जलाने से खेत साफ हो जाता है और राख से भूमि को खाद मिलती है। कृषि विभाग ने स्पष्ट किया है कि यह धारणा पूरी तरह गलत है। पराली जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति घटती है, मिट्टी के लाभदायक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
विभागीय अधिकारियों के अनुसार पराली जलाने से वातावरण में भारी मात्रा में कार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और राख घुलकर वायु प्रदूषण को बढ़ाती है। इससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। लगातार पराली दहन से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी घट रही है, जिससे उसमें नाइट्रोजन, सल्फर और अन्य पोषक तत्वों की भारी कमी आ जाती है। इसके साथ ही खेतों के लाभदायक कीट नष्ट हो जाने से नई-नई बीमारियाँ फैलने लगती हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने यह भी बताया है कि एक टन पराली के जलने से लगभग पाँच से छह किलोग्राम नाइट्रोजन, दो किलोग्राम फास्फोरस और एक किलोग्राम से अधिक सल्फर जैसे आवश्यक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
पराली जलाने से वायु प्रदूषण तो बढ़ता ही है, साथ ही पशुओं के चारे की उपलब्धता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। वर्ष भर के लिए चारे की कमी की समस्या खड़ी हो जाती है। इसी कारण आवास एवं पर्यावरण विभाग ने वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम 1981 की धारा 19(5) के अंतर्गत फसल अवशेष जलाने पर प्रतिबंध लगाया है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एन.जी.टी.) द्वारा भी खेती में कृषि अवशेष जलाने पर रोक लगाई गई है। नियमों के उल्लंघन पर संबंधित किसान पर कानूनी कार्रवाई के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। दो एकड़ से कम क्षेत्र में पराली जलाने पर ढाई हजार रुपये, दो से पाँच एकड़ पर पाँच हजार रुपये तथा पाँच एकड़ से अधिक क्षेत्र में पंद्रह हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे पराली जलाने के बजाय वैकल्पिक उपाय अपनाएँ। इसके लिए स्ट्रॉ मल्चर मशीन की सहायता से पराली को एकत्र कर अन्य उपयोगों में लिया जा सकता है। वहीं वेस्ट डी-कम्पोजर घोल का छिड़काव कर खेतों में ही अवशेषों को सड़ा कर पोषक तत्वों का प्रबंधन किया जा सकता है। यह घोल 200 लीटर पानी में दो किलोग्राम गुड़ और 20 ग्राम वेस्ट डी-कम्पोजर मिलाकर छह से सात दिनों तक ढककर तैयार किया जाता है। इसके अलावा धान की पराली का यूरिया से उपचार कर उसे पशु चारे के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है।
कृषि विभाग ने सभी किसानों से आग्रह किया है कि वे पराली न जलाएँ, ताकि भूमि की उर्वरता, पर्यावरण की गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके। विभाग ने कहा है कि जिम्मेदार किसान वही है जो अपनी भूमि की रक्षा के साथ प्रकृति की भी सुरक्षा करे।



