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नारियल तोड़ने का अभिप्राय है अहंकार त्यागकर स्वयं को भगवान को अर्पित करना – राम बालकदास जी


पोलमी- नारियल तोड़ने का अर्थ है अहंकार त्यागकर स्वयं को भगवान के सामने समर्पित करना। इससे अज्ञानता, घमंड का कवच टूट जाता है तथा ज्ञान, सरलता, आत्मा की शुद्धि के द्वार खुलते हैं।        
पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में सनातन धर्म के सभी पवित्र संस्कारों में नारियल तोड़ने की परंपरा पर प्रकाश डालते हुये संत रामबालकदास जी ने कहा कि सनातन परंपरा के सभी शुभ कार्यों में नारियल का होना आवश्यक है। नारियल बलि का प्रतीक है। देवताओं को बलि देने का अर्थ है उनके द्वारा की गयी कृपा के प्रति आभार व्यक्त करना। एक समय सनातन में मनुष्यों तथा जानवरों की बलि देने की प्रथा थी आदि शंकराचार्य ने इस अमानवीय प्रथा को तोड़ा तथा इसके स्थान पर नारियल चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ की। नारियल मनुष्य के मस्तिष्क से मेल भी खाता है। इसके जटा की तुलना मनुष्य के बालों से कवच की तुलना खोपड़ी से, इसके पानी की तुलना खून से तथा गुदे की तुलना मनुष्य के दिमाग से की जाती है।       
बाबा जी ने कहा नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। श्री अर्थात लक्ष्मी, समृद्धि। नारियल वृक्ष को कल्पवृक्ष कहा जाता है। समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिये नारियल लेकर संकल्प किया जाता है। इसे मंगल के प्रतीक कलश के ऊपरी हिस्से में भी रखा जाता है। पूजा थाल में नारियल का होना आवश्यक है।

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