सात दिवसीय सुरभि महायज्ञ वीरेंद्र नगर में उमड़ा जनसैलाब

सात दिवसीय सुरभि महायज्ञ वीरेंद्र नगर में उमड़ा जनसैलाब

कवर्धा। लोहारा ब्लॉक के वीरेंद्र नगर गांव में सात दिवसीय 9 कुंडलीय सुरभि महायज्ञ का आयोजन, 23 फरवरी से 1 मार्च तक है। इस कार्यक्रम का आयोजन वीरेंद्रनगर के आसपास के 30-40 गांव के ग्रामीण लोगों के सहयोग गौ माता के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए जामड़ी पाटेश्वर धाम बालोद(छत्तीसगढ़) के संरक्षक रामबालक दास जी महाराज के मार्गदर्शन में हो रहा है।
सुरभि यज्ञ के छठवें दिन कथावाचक के रूप में संत श्री आसारामजी बापू के कृपा पात्र शिष्य ओंकारानंद जी थे। सुरभि महायज्ञ में ओंकारानंद जी ने गौ महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहां कि परमात्मा की अनुपम कृति युवा सनातन संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं देसी गाय, जो मनुष्य को सभी प्रकार से पोषण देने व उन्नत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जहां एक ओर गाय का दूध, घी, गोमूत्र व गोबर व्यक्ति को स्वस्थ बुद्धिमान व बलवान बनाते हैं तथा गाय का दर्शन स्पर्श परिक्रमा मनुष्य के पाप-ताप का नाश करते हैं, वहीं दूसरी ओर गाय व उत्पाद समाज के लिए वरदानस्वरूप है एवं किसानों व बेरोजगारों के लिए रोजगार के द्वार खोल देते हैं कहावत हैं:
जननी जनकर दूध पिलाती, केवल साल-छ: माही भर।
गोमाता पय-सुधा(दूध रूपी अमृत) पिलाती, रक्षा करती जीवनभर।
पूज्य संत श्री आसाराम जी बापू कहते हैं कि “गौ और गीता ईश्वर अमूल्य निधि है। इन दोनों का आश्रय लेकर मनुष्यमात्र स्वस्थ, सुखी, व सम्मानित जीवन की प्राप्ति और ईश्वर प्राप्ति भी कर सकता है।”
गाय के रोमकूप में 33 करोड़ देवी-देवताओं का अर्थात सात्विक कणों, सात्विक तरंगों का वास है। श्रद्धा-भक्ति से गौ को प्रणाम करने से इन सभी देवी देवताओं को एक साथ प्रणाम हो जाता है। इन सब को एक साथ प्रसन्न करना हो तो सरल व उत्तम साधन है गौ-सेवा आप गांव को एक ग्रास खिला दीजिए उपरोक्त सारे देवी-देवताओं को पहुंच जाएगा और उससे आपको उन सभीकी प्रसन्नता प्राप्त हो जाएगी।

देसी गाय की ही इतनी महिमा क्यों?
सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग भारतीय देशी गाय अनादि काल से मानव को स्वस्थ, बुद्धिमान, बलवान व ओजस्वी-तेजस्वी बनाती रही है। देसी गायों में ककुद से लेकर रीड के समानांतर ‘सूर्यकेतु’ नाड़ी रहती है, जिससे सूर्य की ‘गौ’ नामक किरण प्रविष्ट होती है। जैसे मनुष्य में सुषुम्ना नाड़ी होती है, वैसे ही गाय में सूर्यकेतु नाड़ी होती है।
देशी गाय के दूध, दही, मक्खन, घी, गोमूत्र एवं गोबर में भी स्वर्ण पाया जाता है। स्वर्ण सर्वरोगहर, आरोग्य एवं दीर्घायु प्रदान होता है। हमारे वेदों में भी गायों की महिमा आती है।
वैदिक काल में युद्ध के समय सेना के साथ लाल रंग की गाय रखी जाती थी, जिनका दूध पीकर योद्धाओं की शौर्यशक्ति संवर्धित होती थी। इससे युद्ध में लड़ते समय वे सैनिक थकते नहीं थे।
आज वैज्ञानिक भी गाय के दूध, दही, आदि गो-रस की महिमा गाते हैं। उनका कहना है कि गो-रस में गामा ग्लोब्युलीन की उपस्थिति होती है जो आरोग्य आयुष्यप्रद एवं रोगप्रतिकारक शक्तिवर्धक है।
गौरक्षण व संवर्धन के प्रेरणा स्रोत: संत
हमारी संस्कृति में गायों का अनेक दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है और उनके प्रति समाज में जो भी महत्वपूर्ण हैं, आदर भाव है वह हमारे संतो-महापुरुषों के कारण ही हैं। वर्तमान समय में पूज्य संत श्री आसाराम जी बापू का गौ संरक्षण व संवर्धन में उल्लेखनीय योगदान है। आपने न केवल इसके लिए समाज को प्रेरित किया बल्कि इस हेतु अनेक महत्वपूर्ण कार्य भी किये।
आपने कत्लखाने भेजी जा रही हजारों गायों को बचाकर उनके लिए गौशालाएं बनवायी। देश के अनेक राज्यों में आपके मार्गदर्शन में चल रही गौशालाओं में वर्तमान में करीब 11000 गायों का संरक्षण, संवर्धन व गौ सेवा हो रही है। आपने गाय के गोबर गोमूत्र आदि से गौ-चंदन धूपबत्ती, गोमूत्र अर्क, गौशुद्धि सुगंध फिनायल, गौ सेवा केचुवा खाद आदि बनवाकर गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के आदर्श प्रकल्प प्रस्तुत किये तथा गौ पालकों को आर्थिक तंगी से निपटने का मार्ग दिखाया। इन प्रकल्प ऐसे लोगों को रोजगार भी मिला।
ओंकारानंद जी महाराज के स्वागत के लिए प्रमुख रूप से बाल संस्कार प्रभारी आकाश राजपूत, कोमल कुमार निर्मल, तारिणी साहू, स्वाति नुरुटी, अरुण साहू, खोमेंद्र सिन्हा, लोहारा जोन प्रभारी महेंद्र लांझी, ढालसिंह, गौकरण साहू, रेवाराम, हरिॐ इंस्टीट्यूट कॉलेज के संचालक विजय शर्मा, श्री राम साहू कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष, सम्स्त साधक परिवार एवं कई हजारों की तादाद में श्रद्धालु गण उपस्थित थे।