छत्तीसगढ़ी छंद का स्वर्णिम युग
आलेख —-कमलेश प्रसाद शर्माबाबू छत्तीसगढ़ी साहित्य में छंद का अपना एक विशेष महत्व है। वर्तमान समय को अगर छत्तीसगढ़ी छंद का स्वर्णिम युग कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। छत्तीसगढ़ी छंद को स्थापित करने में गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी ने जो साहसिक कार्य किया है वो विरले ही देखने को मिलता है। छंद छ: के संस्थापक गुरु जी निगम जी ने छंद का आनलाइन कक्षा चलाकर अब तक लगभग ढाई सौ से अधिक छंद साधक शिष्यों को गढ़ा है जो आज छत्तीसगढ़ी साहित्य को एक नई दिशा देने का काम करते हुए छत्तीसगढ़ महतारी की नि: स्वार्थ सेवा में संलग्न हैं। गुरु जी की अनुपम उपलब्धि को देखकर वैभव प्रकाशन रायपुर के सम्पादक और वरिष्ठ साहित्यकार डाँ.सुधीर शर्मा
कहते है कि "छंद के छः का आनलाइन एक चलता फिरता गुरुकुल है और गुरु जी निगम इसके शंकराचार्य हैं "। वास्तव में जब कोई गुरु किसी विशिष्ट कार्य के लिए अपने को समर्पित कर दे तो फिर वो गुरु श्रेष्ठ गुरुता ग्रहण कर लेता है उसका अपना कोई निहित स्वार्थ नहीं रह जाता।वो अपने शिष्यों की उपलब्धि को अपना सब कुछ मान लेता है।जिस तरह एक किसान अपने लहलहाते फसलों को देखकर अत्याधिक सुखानुभुति और प्रसन्न हो जाता है,जिस तरह एक पंछी अपने छोटे-छोटे बच्चों को नये पंखों के साथ उड़ते हुए देखकर चहक उठता है ठीक वैसे ही गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी अपने छंद साधकों की छंद सृजन और उपलब्धि देखकर आत्मविभोर हो जाते हैं।नित नये-नये छंदकार और नई छंदबद्ध किताब आज छत्तीसगढ़ी भाषा में निकल रही है। इक्कीसवी सदी का छत्तीसगढ़ हमेशा छत्तीसगढ़ी साहित्य में स्वर्णिम युग के रूप में हमेशा जाना जायेगा और इसे छत्तीसगढ़ी भाषा का स्वर्णिम काल कहा जायेगा। गुरु जी निगम जी एक कुशल छंदविज्ञ है और उनका हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषा में समान अधिकार है वे छत्तीसगढ़ी छंद के सिद्धहस्त साहित्यकार जनकवि कोदू राम दलित के सुपुत्र हैं। आजकल के इस दौर में जहाँ वैतनिक शिक्षक भी एक घंटे की फ्री ट्यूशन नहीं पढ़ा पाते वहीं गुरुदेव निगम जी की नि: स्वार्थ भाव से नि:शुल्क सेवा नि:संदेह उन्हे श्रेष्ठ बनाता है। वर्तमान में उनके शिष्यों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में छंद सृजन को एक नई ऊंचाई दी है। प्रतिवर्ष छंद साधको द्वारा छंदबद्ध पुस्तकों के प्रकाशन को देखकर यही कहा जा सकता है कि गुरु जी ने जो पेड़ लगाये थे वे मीठे-मीठे फल लगकर आज छत्तीसगढ़ महतारी भाषा में चार चाँद लगा रहे हैं।
वास्तव में वे एक गुरु नहीं बल्कि एक मित्र बनकर साधकों को परिमार्जित करते हैं।उनकी अनवरत सेवा गुरू शिष्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज भी जारी है। ऐसे योगी गुरु को मेरा सत् सत् नमन।। ओ