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Coronavirus: महाराष्ट्र में मौत के 10 हजार सौदागर! कई लोग अनजाने में बन गए रैकेट का हिस्सा

महाराष्ट्र: कोरोना से जान बचाने वाली दवाओं की कालाबाजारी, 15 गिरफ्तार…10 हजार लोगों की मिली जानकारी
Image Source : AP

मुंबई: महाराष्ट्र में इन दिनों कोरोना संक्रमण के नाम पर जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी का एक बड़ा खेल चल रहा है। दरअसल, कोरोना वायरस को कंट्रोल करने वाली दो दवाओं- रेमडेसिवीर और टोसिलिजुमैब की काफी डिमांड हैं। दोनों दवाइयों के इंजेक्शन की डिमांड में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हालात ये है कि ये दोनों जीवनरक्षक दवाएं बाजार में स्टॉक में बहुत कम मिल पा रही है और क्रिटिकल स्टेज वाला कोरोना मरीजों के परिजन इन इंजेक्शनों को खरीदने के लिए मुह मांगी कीमत चुकाने को तैयार हैं।

लोगों की इसी मजबूरी का फायदा उठाकर पूरे महाराष्ट्र में कई ऐसे गिरोह तैयार हो गए हैं, जो इन दोनों जीवनरक्षक दवाओं के इंजेक्शन की जमकर कालाबाजारी कर रहे हैं। इस गिरोह में न सिर्फ मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव और फार्मा कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूटर के कर्मचारी हैं, बल्कि कई हेल्थ वर्कर्स और दलाल भी हैं। जिस रेमडेसिवीर वाएल इंजेक्शन की कीमत 4 से 5 हजार रुपये है, उसे यह गिरोह 30 से 35 हजार रुपये और जिस टोसिलिजुमैब वाएल की एक शीशी की कीमत 7 से 8 हजार है, उसे 60 से 70 हजार रुपये तक की कीमत पर बेचा जा रहा है।

इसकी मार्केटिंग और नेटवर्किंग का पूरा रैकेट भी बहुत यूनिक है। क्योंकि रेमडेसिवीर और टोसिलिजुमैब की इस कालाबाजारी में ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे हैं, इसलिए इन दवाओं को सोशल मीडिया, खासकर व्हाट्सएप ग्रुप के जरिये मरीजों तक पहुंचाया जा रहा है। जांच एजेंसियों से मिली जानकारी के अनुसार अब तक  मीरा रोड, मुलुंड, ठाणे और कल्याण शहर की पुलिस को पकड़े गए कुल 15 आरोपियों से 40 व्हाट्सएप ग्रुप की जानकारी मिली है। प्रत्येक ग्रुप में 250 मेंबर्स हैं, यानि 40 ग्रुप में करीब 10 हजार मेंबर्स हैं, जिनकी जानकारी पुलिस को मिली है। 

इन 10 हजार लोगों में 95 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जिन्हें पता ही नहीं है कि वह ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप के मेंबर्स बन गए हैं, जो अंतरराज्यीय कोरोना दवाओं की कालाबाजारी का गैंग चलाते हैं। इस गैंग के लोग इन व्हाट्सएप ग्रुप पर ऐसे भावनात्मक मैसेज डालते हैं, जैसे- “अगर किसी जरूरतमंद को कोरोना का जीवनरक्षक इंजेक्शन चाहिए हो तो हम जानकारों के जरिए दिलवा सकते हैं”

मुंबई में कोरोना वायरस का ग्राफ एक लाख क्रोस कर गया है। ऐसे में हर दूसरे मोहल्ले में इस गिरोह को जरूरतमंद मरीज मिल जाते हैं, जिसके बाद यह उनके साथ फोन पर गैंग के दूसरे मेंबर्स की बात करवाते हैं और सौदेबाजी कर रेट फिक्स करते हैं। महाराष्ट्र फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को इस मामले की जानकारी मिलने के बाद पूरे राज्य के 7 मंडल के सभी 20 टीमों को हाई अलर्ट कर दिया गया, जिसके बाद पिछले 15 दिनों के भीतर 4 बड़े शहरों से इस गिरोह के 15 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

अब तक 8 गोदामों में रेड कर लाखों की दवाओं को जब्त किया गया है। अब तक मुम्बई, मीरा रोड, ठाणे और कल्याण शहर में छापेमारी कर 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और लगातार छापेमारी जारी है। एफडीए ने चार शहरों की पुलिस के साथ मिलकर पकड़े गए 15 आरोपियों के घर, दफ्तर और अन्य ठिकानों पर भी छापेमारी की है, जिसमें कई अहम दस्तावेज, नकदी और स्टॉक में रखी जीवनरक्षक दवाइयां मिली हैं। इन सभी आरोपियों के मोबाइल डेटा से पता चला कि लॉकडाउन लगने के तुरंत बाद यानि 25 मार्च से ही इस गिरोह ने अलग-अलग शहरो में अपना कालाबाजारी का कारोबार शुरू कर दिया था।

इन्होंने कई डॉक्टरों, अस्पतालों में भी अपना नेटवर्क फैलाया। कहीं 3 लेयर (डॉक्टर, दलाल, ग्राहक) तो कहीं 5 से 7 लेयर चैन बनाकर इन दवाओं, इंजेक्शनों को 8 से 10 गुना महंगे दामों पर ग्राहकों तक पहुंचाया। पुलिस यह भी जांच कर रही है कि कहीं इस काम में बड़े अस्पतालों के बड़े डॉक्टरों का सीधा इन्वॉल्वमेंट तो नहीं है, जो कोरोना मरीज को बचाने के नाम पर तुरंत उनके रिस्तेदारों को रेमडेसिवीर और टोसिलिजुमैब इंजेक्शन अरेंज करने के लिए बोलते हैं और इन दलालों के नंबर खुद उन्हें देते हैं।

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