लोरमी विकासखंड के ग्राम सुकली में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया भोजली पर्व,दी गई विदाई

लोरमी विकासखंड के ग्राम सुकली में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया भोजली पर्व,दी गई विदाई

लोरमी के समीपस्थ ग्राम सुकली में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोक महापर्व भोजली हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। भोजली विसर्जन के लिए गांव में भजन कीर्तन के साथ लोग समूह में निकले। भोजली गीत के साथ आगे-आगे कलश और भोजली को सिर पर रखकर चलती रही। महिला वर्ग भोजली उत्सव को लेकर काफी उत्साहित दिखा। इस अवसर पर ग्राम के सरपंच नोहर सिंह राजपूत ने कहा कि छत्तीसगढ़ का यह लोकपर्व रक्षाबंधन के दूसरे दिन अर्थात कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। भोजली को सावन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को घर में टोकरी में उगाने के लिए गेहूँ के दाने को भिंगोकर बोया जाता है और सात दिन तक विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर खूब सेवा की जाती है।
साथ ही उमाशंकर राजपूत ने भोजली महोत्सव के बारे में कहा कि भोजली का पर्व हमारी विशिष्ट छत्तीसगढ़ी संस्कृति है। भोजली मित्रता का उत्सव भी है। छत्तीसगढ़ में मित्रता के अटूट बंधन के लिए भोजली बदलने की परम्परा रही है। इस तरह भोजली केवल पारम्परिक अनुष्ठान नहीं रह जाता अपितु लोगों के दिलों में बस जाता है। जब हमारी संस्कृति बचेगी तभी हम बचेंगे। जब हमें अपनी संस्कृति पर गौरव होगा, तभी हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। गांव के मुख्य चौराहे से निकलकर हर एक गली-मुहल्ले में झूमते गाते हुए भजन-कीर्तन के साथ भोजली रामायण चौक के पास पहुंचा जहाँ विशाल मेला आयोजित किया जाता है। वहाँ पर स्थित मनियारी नदी में एक साथ भोजली विसर्जन किया गया। इस दौरान नदी में पूजा अर्चना किया गया। विसर्जन के बाद बचाए गए भोजली बड़े-बुजुर्गों को भेंट कर आशीर्वाद लिया गया। इस दिन को छत्तसगढ़ी फ्रेंडशिप के रूप में मनाया गया। एक-दूसरे को भोजली देकर मितान बनाने की परंपरा का भी निर्वहन किया गया। एक-दूसरे के कान में भोजली लगाकर दोस्ती को अटूट बनाने की कसम भी ली गई। भोजली को छत्तीसगढ़ की सुख-समृध्दि हरियाली का प्रतीक माना जाता है।