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शैक्षणिक भ्रमण सह प्रशिक्षण से किसानों ने अपनाई जैविक खेती, बढ़ा आत्मविश्वास

AP न्यूज विश्वराज ताम्रकार जिला ब्यूरो केसीजी

खैरागढ़ :
जिले के किसानों में जैविक एवं परंपरागत खेती के प्रति निरंतर रुझान बढ़ता जा रहा है। कृषि विभाग अंतर्गत संचालित जैविक खेती मिशन एवं परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत चयनित क्लस्टर के किसानों को योजना प्रावधानों के अनुरूप राज्य के बाहर शैक्षणिक भ्रमण सह प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। इस पहल का उद्देश्य किसानों को नवाचार से जोड़ते हुए जैविक खेती को प्रोत्साहित करना है।

इसी क्रम में छुईखदान विकासखंड के वनाचल क्षेत्र के किसानों को राज्य के बाहर शैक्षणिक भ्रमण सह प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल किया गया। भ्रमण एवं प्रशिक्षण के पश्चात किसानों में न केवल जैविक एवं परंपरागत खेती के प्रति रुचि बढ़ी, बल्कि उन्होंने इसे अपने खेतों में अपनाना भी शुरू कर दिया है।

वनाचल ग्राम तुमड़ादाह के कृषक सुरेन्द्र (पिता लखन गाड़) ने बताया कि शैक्षणिक भ्रमण से उन्हें जैविक खेती के लाभों की जानकारी मिली, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने 5 एकड़ क्षेत्र में कोदो फसल का जैविक उत्पादन प्रारंभ किया है।
इसी तरह ग्राम धारिया के कृषक मोहन (पिता सुखऊ) ने परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत अरहर फसल का प्रदर्शन करते हुए बिना रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के फसल उत्पादन कर अधिक उपज एवं लागत में कमी हासिल की है।

कृषक अमरनाथ ने बताया कि लगातार रासायनिक दवाइयों के उपयोग से फसल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है और खेती की लागत भी बढ़ रही है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव किसानों पर पड़ रहा है। जैविक खेती इस समस्या का बेहतर समाधान है।

किसानों के लिए साबित हुई महत्वपूर्ण पहल

उप संचालक कृषि राजकुमार सोलंकी ने बताया कि जिले में कृषि विभाग द्वारा जैविक खेती मिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना एवं प्राकृतिक खेती जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत अरहर, कोदो एवं धान फसलों के प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं। साथ ही चयनित किसानों का नेचुरल ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एसोसिएशन
 के अंतर्गत पंजीयन कराया गया है, जिससे उन्हें जैविक खेती का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा।

विशेषज्ञों से संवाद से बढ़ा आत्मविश्वास

योजनांतर्गत लाभान्वित किसानों ने बताया कि राज्य के बाहर भ्रमण सह प्रशिक्षण के दौरान प्रत्यक्ष अवलोकन एवं कृषि विशेषज्ञों से विचार-विमर्श के माध्यम से न केवल जैविक खेती के प्रति रुचि बढ़ी, बल्कि खेती को लेकर उनका आत्मविश्वास भी मजबूत हुआ है।

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