कवर्धा : रेल लाइन का काम शुरू नहीं, 6 साल से सिर्फ कागजों में ही बिछी पटरी..उम्मीद की कोई किरण नहीं

कवर्धा : रेल लाइन का काम शुरू नहीं, 6 साल से सिर्फ कागजों में ही बिछी पटरी..उम्मीद की कोई किरण नहीं

टीकम निर्मलकर AP न्यूज़ कवर्धा : रेल विस्तारीकरण की दिशा में प्रदेश की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में शामिल डोंगरगढ़-कवर्धा-कटघो रा नई रेल लाइन आज भी कागजों व विभागीय मीटिंगों के दायरे में ही फंसी पड़ी है। 2018 में जिस धूमधाम से इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी, उसे जनता ने विकास की नई राह माना था। उस समय बताया गया था कि यह रेल लाइन न सिर्फ कबीरधाम, मुंगेली, कोरबा और राजनांदगांव जिलों को सीधा बड़ा रेल कनेक्शन देगी, बल्कि उद्योग, पर्यटन और कारोबार को भी नई गति मिलेगी। लेकिन 2025 जाते-जाते यह सपना अधूरा ट्रैक साबित हो रहा है।
हाल ही में सीएम विष्णुदेव साय ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात कर प्रदेश की रेल परियोजनाओं पर चर्चा की। लेकिन डोंगरगढ़-कटघोरा नई लाइन का कार्य जमीनी स्तर पर भी कब शुरु होगा इस पर डेडलाइन निकलकर सामने नहीं आई। जब सितंबर 2018 में केंद्र सरकार ने लगभग 294.5 किमी लंबी ब्रॉड-गेज इलेक्ट्रिफाइड रेल लाइन को मंजूरी दी। प्रोजेक्ट की लागत लगभग 6000 करोड़ रुपए तय की गई। तत्कालीन अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों ने दावा किया था कि 2023-24 तक पहले फेज का काम पूरा हो जाएगा और लोगों को नई ट्रेन सेवाएं मिलने लगेगी। चुनावी आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले तत्कालीन राज्य की भाजपा सरकार ने कवर्धा में इसके लिए भूमिपूजन कर दिया। लेकिन इसके बाद छह वर्षों में धरातल पर प्रोजेक्ट अब तक नहीं उतर पाया है।
कोरबा-डोंगरगढ़ के बीच माल ढुलाई की लागत दोगुनी: इस प्रोजेक्ट के लेट होने का असर सीधे जनता की जेब और पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। कबीरधाम और मुंगेली जैसे जिलों को आज भी सड़क पर निर्भर रहना पड़ रहा है। औद्योगिक निवेशक नए प्रोजेक्ट लाने से हिचक रहे हैं। कोरबा-डोंगरगढ़ के बीच माल ढुलाई की लागत दोगुनी बनी हुई है। युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे। पर्यटन स्थलों तक पहुंच आसान न होने से संभावित आय घट रही है।
देरी के कारण जनता में बढ़ रहा रोष: भूमि अधिग्रहण में किसानों की आपत्तियां, मुआवजे को लेकर विवाद, राजनीतिक बदलाव और विभागीय समन्वय का अभाव। इन सबने मिलकर इस प्रोजेक्ट को ठप कर दिया। अगस्त 2025 की रिपोर्ट बताती है कि करीब 800 करोड़ रुपए विभिन्न मदों में खर्च हो चुके हैं, लेकिन जमीन पर काम का नामोनिशान नहीं है। लोगों में नाराजगी है। बिलासपुर कंट्रक्शन विभाग एसईसीआर बिलासपुर कंट्रक्शन विभाग के सीपीआईओ आरके दिव्या ने बताया कि निर्माण कार्य की पूरी जवाबदारी रेलवे को मिली है। अभी तक हमारे पास कोई पत्र नहीं आया है। हमारी जानकारी में सीआरसीएल भूमिका में है। आगे रेल मंत्रालय से यदि आदेश आता है तो उसके अनुसार काम होगा।
प्रोजेक्ट में अब तक क्या हुआ? जवाब निराशा है पिछले छह साल में इस प्रोजेक्ट ने जितनी सुर्खियां बटोरी, उतनी पटरी नहीं बिछी। शुरुआती सर्वे, डीपीआर और भूमि चिह्नांकन जैसे कागजी कार्य जरूर हुए। कुछ जिलों में सीमांकन प्रक्रिया शुरू की गई और राज्य सरकार ने 2024 में 300 करोड़ रुपए तक का बजट आवंटित भी किया। रेलवे, राज्य सरकार व एसपीवी कंपनी के बीच कई दौर की बैठकें भी हुईं। लेकिन वास्तविक प्रगति धरातल से गायब है? आज भी ग्राउंड पर न स्टेशन बिल्डिंग दिखती है, न रेल लाइन बिछाने की मशीनरी। कई जगह तो भू-अर्जन भी शून्य है।
सीआरसीएल अब निर्माण की भूमिका में नहीं रहेगी छत्तीसगढ़ रेलवे कार्पोरेशन लिमिटेड रायपुर के जनसूचना अधिकारी संजय सगदेव ने बताया कि डोंगरगढ़-कटघोरा नई रेल लाइन के निर्माण कार्य में अब सीआरसीएल भूमिका में नहीं रहेगी। राज्य सरकार पूरा जिम्मा रेलवे को दे रही है। इसलिए प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस रिपोर्ट रेलवे के उच्चाधिकारी देंगे।


