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गंडई पंडरिया ,जनजातीय लोक कला व बोली विकास अकादमी भोपाल , मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा दिनांक 15 से 17 नवंबर को पुण्य सलिला नर्मदा नदी के तट पर लोकमाता अहिल्या देवी की नगरी महेश्वर के नर्मदा रिसॉर्ट में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।संगोष्ठी का विषय था “गोत्र:उद्भव ,मान्यता और प्रतीक”।संगोष्ठी का शुभारंभ सप्त मातृका आश्रम के महंत समानंद गिरि के मुख्य आथित्य में संपन्न हुआ।इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रदेशों से लगभग पचास अध्येताओं ने भाग लिया।
उक्त संगोष्ठी में गंडई नगर के सेवानिवृत व्याख्याता,साहित्यकार व संस्कृति कर्मी डॉ. पीसी लाल यादव ने पंचम सत्र की अध्यक्षता करते हुए “गोत्र:उद्भव,मान्यता और प्रतीक” के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के यदुवंशियों के गोत्रों पर केंद्रित अपना शोधपूर्ण व्याख्यान प्रस्तुत किया।उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में यादव जाति के अनेक उपवर्ग हैं। जिनमें कोसरिया,झेरिया,ठेठवार, दूधकंवरा,देशहा, अठोरिया आदि प्रमुख हैं।ये गोपालन,गोचरण,दुग्ध व्यवसाय व कृषि का कार्य करते हैं।ये श्रीकृष्ण के वंशज हैं और यह पौराणिक जाति है। अत्रि ऋषि से इनके गोत्र की उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है। चूंकि ये प्रकृति के निकट रहते हैं, अत: इनके गोत्रों के नाम अधिकतर प्राकृतिक उपादानों यथा पेड़ पौधों, पशु पक्षियों, जीव जंतुओं ,नदी पहाड़ों, स्थानों व कार्यों के नाम पर आधारित हैं। यह वीरता व शौर्य से पूर्ण जाति है और सांस्कृतिक विविधताओं से संपन्न भी है। राऊत नृत्य इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। डा.यादव ने सभी वर्गों के गोत्रों का वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकरण कर प्रभावी व्याख्यान प्रस्तुत किया।जिसकी सभी विद्वानों ने प्रशंसा की।
इस अवसर पर अकादमी के अध्यक्ष डा.धर्मेंद्र पारे ने पीसी लाल यादव को पुष्पगुच्छ,प्रशस्ति पत्र,प्रतीक चिन्ह व चेक प्रदान कर सम्मानित किया। इस उपलब्धि पर साहित्यकारों,कलाकारों व इष्ट मित्रों ने डा.यादव को बधाइयां प्रेषित कर शुभकामनाएं दी हैं।