छत्तीसगढ़ी साहित्य और संस्कृति के प्रति समर्पित -डाँ.पीसीलाल यादव


आलेख – कमलेश प्रसाद शर्माबाबू जिसके ब्यक्तित्व और कृतित्व में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की छाप साफ-साफ झलकती हो वही है डाँ.पीसीलाल यादव।सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श पर चलने वाले डाँ.यादव अपने शिक्षकीय काल से लेकर आज तक छत्तीसगढ़ी साहित्य को एक नई ऊंचाई तक ले जाने मे अविस्मरणीय भूमिका निभाई है और निभाते आ रहे हैं। उन्हें केवल एक बाल साहित्यकार के रूप में बांधना भी उचित नही होगा। जहां तक मेरी जानकारी है डाँ.पीसीलाल यादव जी ने छत्तीसगढ़ी संस्कृति की उन पहलुओं को स्पर्श किया है जहां साधारणतः लोगों का ध्यान नही जाता।उनके अनेक शोध पत्र आज छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिए वरदान के समान है।देवार,बइगा,बसदेवा जैसी उन जातियों पर उन्होंने शोध किया है जो समाज के अंतिम छोर में बसे लोग हैं। पंडवानी: परंपरा और प्रयोग में शोध प्राप्त करने वाले डाँ.यादव जी ने प्रभु श्री राम जी के चरित्र को भी अपनी सशक्त लेखनी से सम्मानित किया है। उनकी लिखी हुई चर्चित किताब "छत्तीसगढ़ का लोक जीवन और राम" इसका साक्षात उदाहरण है। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन, लोकगाथा, लोककथा,लोक संस्कृति पर मजबूत पकड़ रखने वाले डाँ.यादव की कृतियों में इनकी अमिट छाप दिखती है।हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "छत्तीसगढ़ की लोककथाएं" 32 लोक प्रचलित कथाओं का संग्रह है। उनकी लेख, कहानी, कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।उनके गीतों का प्रसारण समय-समय पर आकाशवाणी से होती रहती है। दूरदर्शन और आकाशवाणी के साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्मों में भी अभिनय किया है।वे लगातार 1976 से छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक संस्था दूधमोंगरा का संचालन करते आ रहे हैं। डाँ.यादव एक प्रखर वक्ता भी है उनकी हाजिर जवाबी के लोग कायल रहते हैं। विभिन्न आयोजनों में उन्हे जिस भी विषय पर वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जाता है उस पर उसकी तैयारी और वक्तव्य देखने लायक होती है।वे विषय से ईतर नही जाते। स्रोता उनहे मंत्रमुग्ध होकर सुनती है।डाँ.सियाराम साहू ने उन पर शोध भी किया है। साहित्य के क्षेत्र में वे छत्तीसगढ़ की एक महान विभूति है।। अंतिम में उनकी कविता की कुछ पंक्तियां
हमर बानी हमर पहिचान आय ।
हमर धरोहर हमर शान आय।
माटी बर हम जीबो अउ मरबो,
छत्तीसगढ़िया के इही जान आय।


