पंडरिया : बैगा आदिवासी माताओ का अनोखा व्रत..प्राकृतिक आपदा से अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए रखती है व्रत

पंडरिया : बैगा आदिवासी माताओ का अनोखा व्रत..प्राकृतिक आपदा से अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए रखती है व्रत
टीकम निर्मलकर AP न्यूज़ पंडरिया : बैगा आदिवासी अपनी अनोखा परम्पराओं के लिए हमेशा से चर्चा में रहे हैं। जुलाई से लेकरअक्टूबर तक बैगा आदिवासी महिलाएं प्रकृति की पूजा, व्रत और मनोकामना में गुजारती हैं। इस दौरान ये न सिर्फ प्रकृति के प्रति अपनी आस्था प्रकट करती हैं, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से अपने बच्चों की रक्षा के लिए कामना भी करती हैं। स्थानीय लोग इसे बिजली व्रत कहते हैं।
दरअसल, पंडरिया ब्लॉक के वनांचल ग्राम कांदावानी, बिरुलडीह, तेलियापानी लेदरा, बासाटोला, रुखमीददर, तीनगड्डा, पकरीपानी, कुशयारी, ढ़ेपरापानी, अमली टोला, बांगर, सेंदुरखार, मझगांव, दमगढ़ आदि गांवों की महिलाएं बिजली व्रत रखकर बादल-बिजली जैसी प्राकृतिक आपदाओं को उनके बच्चे से दूर रखने की विनती करती हैं। अपने गांव की सरहद पर पीपल पेड़ के नीचे इंद्रदेव की आराधना करती और धार्मिक अनुष्ठान भी करती हैं।
यह व्रत अपने आप में अनोखा है। पहला तो प्राकृतिक आपदा से अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए व्रत। वह भी एक ही दिन नहीं। माताएं माह के पहले सोमवार को बेटे और शनिवार को बेटी के लिए व्रत रखती हैं। इस दौरान बेटियां मां को गमछा और बेटे साड़ी भेंट करते हैं। पूजा के दौरान इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए महिलाएं नारियल और प्रसाद अर्पित कर दूध व जल चढ़ाती हैं, ताकि आसमानी बिजली जैसी विपत्ति दूर रहे। पूजा के बाद महिलाएं सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण करती हैं। पूजन सामग्री में नारियल, सुपारी, सुई, कपड़ा और दूध शामिल होता है। महिलाएं मिट्टी का टीला बनाकर साल वृक्षों और छह पौधे के नीचे बादल देवता की पूजा करती हैं।
वनांचल ग्राम नेऊर के महादेव सोनी ने बताया कि इस परंपरा की शुरुआत मध्यप्रदेश के बैगा अंचल से मानी जाती है, जो अब छत्तीसगढ़ तक फैल चुकी है। करीब चार माह तक चलने वाला यह व्रत मौसम के बदलते दौर में प्रकृति के प्रति श्रद्धा और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक बन चुका है।
जब बारिश की शुरुआत होती है, तभी से यह बिजली व्रत प्रारंभ होता है। मतलब जुलाई से जब तक बारिश होती रहेगी, आसमानी बिजली कडक़ती रहती है और वज्रपात की सम्भावना है, तब तक यह उपवास चलता रहता है।