कुटुंब परिवार संयुक्त परिवार – श्रीमती संतोष ताम्रकार की कलम से


AP न्यूज स्टेट रिपोर्टर छत्तीसगढ़
कुटुंब परिवार संयुक्त परिवार का, जैसे ही जिक्र किया जाता है आज भी लोग रामायण की कथा में परिवार की एकता के अनेक रुप मिलते हैं ।
जैसे श्री राम के लिए: भरत अयोध्या का राज पाठ त्यागते है, छोटा भाई लक्ष्मण अपने बड़े भाई की सेवा के लिए वन को जाते हैं, पत्नी धर्म निभाने के लिए सीता मैया वन को जाती है। राजा दशरथ का परिवार आदर्श संयुक्त परिवार का उदाहरण प्रस्तुत करता है जो प्रेम-समर्पण और आपसी सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित है।
परिवार व्यक्ति और समाज के बीच की एक कड़ी है, यह व्यक्ति और समाज के निर्माण का केंद्र भी है, परिवार में जैसा वातावरण होगा व्यक्ति की मनोस्थिति स्वभाव पर वैसा ही प्रभाव पड़ेगा, जिस परिवार में आपसी सहयोग सद्भाव आत्मीयता और एकता रहती है, वह उन्नति करता है। घर के मुखिया की मुख्य भूमिका रहती है जो अपने परिवार को जोड़े रखता है, हर एक सदस्य को अपने प्रेम और परिवार के प्रति समर्पण की भावना व्यक्त करता है। परिवारों में संवाद, नोक-झोंक, हंसी-ठहाको के बीच भजन और भोजन दोनों ही मुख्य रूप से जुड़ा रहता है।
घर के सभी सदस्य सप्ताह में कम से कम एक दिन भजन रामायण का पाठ मिलकर करना चाहिए और भोजन संभव हो तो रोज रात्रि में एक साथ करना चाहिए, क्योंकि भजन घर के माहौल को खुशनुमा और सामान्य दिन को भी त्योहार जैसा माहौल बना देती है और अपनों के साथ किया हुआ भोजन किसी प्रसाद से काम नहीं होता, बच्चे-बड़े सभी आनंदित होकर हंसी-मजाक के बीच भोजन ग्रहण करते हैं, इससे तन भी स्वस्थ रहता है और मन भी तनाव मुक्त रहता है और उसके बाद परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ कम से कम आधा- एक घंटा अपने दैनिक दिनचर्ये पर बातचीत का संवाद करना सभी को तरो-ताजा कर देती है। बच्चे जब घर से बाहर किसी भी कार्य से, नौकरी, व्यवसाय के लिए निकले तो घर में विराजमान भगवान को प्रणाम करें एवं अपने माता-पिता का आशीर्वाद ले कर निकले। संयुक्त परिवार आज भले ही कम बचे हुए हैं लेकिन जितने बाकी हैं उनकी गरिमा बनी हुई है। तो इसलिए हम सभी अपने परिवारों को जोड़ने और आपसी संबंधों को जोड़े रखने में एक छोटा सा प्रयास करते हैं ।
खुशियां दूसरों के घर नहीं होती,
अपनों के घरों में ही मिलती है।
भाइयों के संग दोस्ताना,
दोस्ताना जीवन बदल देती है,
पैसों से प्यार नहीं खरीदी जा सकती,
प्यार से प्यार ही खरीदी जा सकती है।
हम भी अपने परिवार एवं बच्चों को संस्कारों एवं उन्नति की राह पर ले चले, उच्च शिखर पर पहुंचा सके एवं आपसी स्नेह की मिसाल बन सके, ताकि हमारा भी परिवार राजा दशरथ के आदर्शो से जाना जाए।
एक अकेला मोती केवल मोती ही रहता है परंतु जब अनेक मोतियों को एक धागे मे पिरोया जाता है, तो उस मोती की कीमत करोड़ों में बदल जाती है, अर्थात मिलजुल कर किया गया कोई भी कार्य हो उसमें सफलता जरूर मिलती है। एक अकेले की बजाय सबको साथ लेकर चलना चाहिए, आज के युग में अगर हर व्यक्ति अपना सोच बदलकर परिवार और समाज के लिए ऐसे समर्पण की भाव रखेंगे तो इस देश में राम राज्य दूर नहीं है।