AP News आपकी आवाज विश्वराज ताम्रकार जिला ब्यूरो केसीजी
वर्तमान छत्तीसगढ़ी भाषा के स्वर्णिम काल में जिस तरह की छत्तीसगढ़ी कहानियाँ डाँ. कमलेश प्रसाद शर्माबाबू ने लिखी है वो छत्तीसगढ़ी भाषा के इतिहास में हमेशा कालजयी रचना के रूप में जानी जायेगी। शर्माबाबू ने छत्तीसगढ़ी साहित्य में एक क्रांतिकारी कहानियों की बुनियाद रखी है।उनकी रचना साहित्य की दशा और दिशा को चित्रित करते हुए निरंतर आगे बढ़ रही है।
साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है।इस लिहाज से भी शर्माबाबू ने अपनी कहानियों के माध्यम से अपना लोहा मनवाया है।उनका पात्र एक नई क्रांति की बिगूल फूँकता हुआ आगे बढ़ता है और समाज को एक नई राह दिखाता हुआ मंजिल की ओर ले जाता है।
शर्माबाबू प्रयोगवादी साहित्यकार हैं वे हमेशा नवप्रयोग में विश्वास रखते हैं।उनकी कहानियाँ दिल की गहराई तक उतरती है। अब तक प्रकाशित उनकी तीन कहानी संग्रह में १८ कहानियाँ संग्रहित है।जो इस प्रकार है – मास्टर झड़ी राम,घुरवा बहुरगे,खेतिहारिन,बंठू-बुटिया, पापी पेट,अनुकम्पा,अंकुश ममा निरंकुश भाँचा,कउँवा मितान,जोगी या भोगी,अनोखी बहू,जरहा बीड़ी,बाँके बढ़ई,
अति-अंधविश्वास,पर भरोसा तीन परोसा,भोरहा ऊपर भोरहा,जय भगवान,मनौती अउ पनौती,
घोर अपराध,आदि शामिल हैं।
पात्रों को शून्य से शिखर तक पहुँचाने की कला शर्माबाबू में कूट-कूट कर भरी हुई है उनका पात्र गरीबी में जन्म लेकर गरीबी में नही मरता बल्कि संघर्ष से उपजा हुआ महानायक होता है।
इसके अलावा एक और बाल कहानी संग्रह जिसमें १३ बाल कहानियाँ संग्रहित हैं जो अभी-अभी छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा प्रकाशित और विमोचित हुआ है जिसमें नव प्रयोग करते हुए एक ही पात्र प्रियांशी की सात अलग-अलग कहानियाँ संग्रहित हैं और बीच-बीच में बच्चों के बालमन के अनुरूप सुंदर-सुंदर कविताओं और छंदों का समावेश है। इसके अलावा वे बाल कविता संग्रह “कुदीस बेंदरा जझरंग-जझरंग”, मुक्तक संग्रह “उटका-पुरान” और शिशु गीत कविता संग्रह “आबे तैं चुप-चुप चंदा” आँगनबाड़ी महूँ जाहूँ” भी लिख चुके हैं।एस सी ई आर टी द्वारा कक्षा ६ से ८ तक के लिए उनकी तीन कहानी “प्रियांशी की पिकनिक” “सोंच” और “चोरी की आदत”(महतो चोर)का चयन किया गया है।उनकी प्रकाशनाधीन संकलन की अभी लम्बी फेहरिस्त है।
अगर कोई लेखक या कवि छंद में भी पारंगत हो तो उनकी रचना में सोने पे सुहागा होता है। शर्माबाबू इसका साक्षात उदाहरण है। उनकी कहानियों में छंद की छटा देखते ही बनती है। चूंकि मैं एक पाठक ही नही प्रकाशक भी हूँ इसलिए इसे गहराई से देखा है। मैं शर्मा बाबू जी की उज्वल भविष्य की कामना करते हुए छत्तीसगढ़ी साहित्य में उसके योगदान को नमन करता हूँ ।।